October 31, 2009

लो ! हम भी एक ठो पोस्ट कबाड लिए इलाहाबाद ब्लॉगर गोष्ठी के नाम पर

इलाहाबाद ब्लॉगर गोष्ठी से एक बात तो जाहिरा तौर पर हालिया हजामत/फ़ेसिअल प्राप्त मुंह की तरह साफ़ हो गई है कि एक ब्लॉगर और कुछ बर्दाश्त करे या नहीं बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई उसे ब्लॉगिंग की तमीज सिखाने की कोशिश करता नजर आए चाहे वह ब्लॉगिंग का महारथी हो या साहित्य का उपदेशक की यहां कोई जगह नहीं है, जगह मिल सकती है लेकिन जब वह उपदेश कम चेतावनी की तरह ना दिया जाए।
ब्लॉगिंग संबंधी तकनीकी ज्ञान या ब्लॉगिंग टिप्स स्वीकार्य है । वो भी तब जब विषय की कुछ नई जानकारी मिल रही हो । बाकी, ब्लॉगपुरियों का कहना है कि विभिन्न विधाओं से आने वाले सुधारातुर लोग पहले अपनी-अपनी शकलों और घरों को साफ़ करें और वहां आधुनिक पुनर्जागरण की शुरुआत करें तो ब्लॉगिंग में तदनुसार सुधार अपने आप हो लेगा । भारत में अभी .06 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं । और हिन्दी ब्लॉगिंग ? लेकिन यहां के अतिरिक्त सतर्क लोग इंटरनेट से होने वाली हानि का रुदन शुरु कर चुके हैं, बजाय इसके कि यह सोचें कि कैसे यह अधिक से अधिक लोगों को उपलब्ध हो सके । यही हाल हिन्दी ब्लॉगिंग का है । एक देशी कहावत है कि तालाब खुदा नहीं और मंगर (मगर) पहले ही उतराय पडे । सरकारी खर्चे पर एक ठो गोष्ठी का हो ली । लोगन की कल्पनाएं मामला फ़ि़क्स होने तक पहुंच गईं । गोष्ठी से ये तो पता चल ही गया कि मधुमक्खी के छ्त्ते में पत्थर फ़ेंकने से क्या हाल होता है ।

ब्लॉगिंग के यदि अंतिम सदस्य को देखा जाय तो यह अनगढ की मासूम अभिव्यक्ति है । इसकी शुरुआत भी यहीं से हुई थी । तो ब्लॉगिंग एक साथ अपने आदिम और विकसित-सभ्य दोनों ही रूपों में दिखाई देगी । ब्लॉगर एक ऐसा बच्चा है जो पैदा होते ही चलने और बोलने लगता है ।

हिन्दी ब्लॉगिंग अभी भी कुछ एग्रीग्रेटरों मुख्यतः ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के सहारे चल रही है । और भी हैं लेकिन उनका न तो हम प्रयोग करते और न ही हमारा ब्लॉग उनमें पाया जाता । यदि पा भी लिया गया तो अपडेट होने की बाद, ब्लॉग पोस्ट तुरन्त नहीं दिखाता । मतलब उनकी अपनी कमियां हैं । कुछ एग्रीग्रेटर मोबाइल नं. मांगते हैं । हम मानते हैं कि यदि ये दो संकलक हट जायें तो हिन्दी ब्लॉगर की स्थिति कुंभ के मेले में बिछडे लोगों की तरह हो जायेगी ।
नए बनने वाले ब्लॉगों तक पहुंचने का तो सवाल ही नहीं उठेगा । इसी वजह से हमने अपने ब्लॉग में छोटा संकलक लगा रखा है | अभी कुछ समय पहले ब्लॉगवाणी थोडे समय के लिए बन्द हो गई थी, तो निराशा व्याप्त थी | यह बात अलग है कि हम निराशा जाहिर करने का मन बना ही रहे थे कि यह फ़िर से शुरू हो गई । आखिर आलस्य के भी कुछ फ़ायदे तो होते ही हैं । कहने का मतलब अभी भी हिन्दी ब्लॉगिंग को ब्लॉगवाणी-चिट्ठाजगत की तरह दो-चार और संकलकों की जरूरत है । और सबसे बडी जरूरत है गूगल सर्च में हिन्दी के की वर्ड्स की ।

इलाहाबाद ब्लॉगर गोष्ठी/स्म्मेलन में ब्लॉगिंग के बारे में बहुत तरह के विचार व्यक्त किए गए । जैसे ब्लॉगिंग क्या है ? यह काम लोग क्यों करते हैं ?
ब्लॉगर कहां पाया जाता है ? क्या बुर्का ओढकर ब्लॉगिंग और टिप्पणी करना उचित है ? क्या एक ब्लॉगर में, "लिखी हुई चीज" को प्रकाशित करने की वांछित तमीज पायी जाती है आने वाले समय में समाज मे यह किस तरह का और कितने ग्राम प्रभाव डाल सकती है ?
इस तरह के बहुत से मुद्दों पर पर्चे पढे गए । यह भी कि मीडिया और प्रेस पर तो पूंजीपतियों या सत्ताधारियों का कब्जा है और उनका काम तो टीआरपी उन्मुख होता है तो क्या ब्लॉगरों का लेखन भी इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है या किया जाना चाहिये ?

क्योंकि यह सम्मेलन काफ़ी चर्चित रहा । कहा जा रहा है कि कोई भी ब्लॉगिंग घटना इससे पहले इतनी चर्चित नहीं भई थी । इसलिये इसकी रिपोर्टिंग भी ज्यादातर \ ब्लॉगरों ने पढी । फ़िर भी हम कुछ प्रमुख लिंक यहां पर इकट्ठे कर रहे हैं । इस पोस्ट के अंत में । यह सम्मेलन उपरांत चर्चा भी विभिन्न पक्षों को समझने के लिए काफ़ी काम की है । साथ ही ब्लॉगिंग पर शोध करने वालों के लिए भी यह सहयोगी रहेगी ।

सम्मेलन के बाद एक हास्य-क्रूर-व्यंग लेख टिप्पणी प्रतियोगिता अपने आप शुरू हो गई । एक से बढकर एक विचारोत्तेजक और बुद्धिवर्धक/भ्रामक लेख और टिप्पणियां लिखी गईं । उनका प्रभाव ऐसा था कि कुंजी पटल की आवाजें तक उन लेखों और टिप्पणियों से सुनी जा सकती थीं और लेखों में कुंजीपटल और चूहे से सज्जित ब्लॉगर कुंजियों को भांति-भांति से साधते नजर आते थे । उनमें तर्कों की जगह जुमलों की प्रधानता थी । क्योंकि ब्लॉगर उसी बात की नोटिस लेता है जिसे पढने में मजा आये । टी.वी. के दर्शक की तरह । स्नायुओं को उत्तेजना मिलनी चाहिए । अरे हम मनोरंजन करने बैठे हैं कोई हरिश्चंद्र बनने नहीं ।

यह बहस सैद्धांतिक मुद्दों पर शुरू हुई और क्रमशः विकसित होती हुई व्यक्तिगत आक्षेपों को प्राप्त हुई । आदमी जब गुस्से में बोलता है तो कई ऐसी बातें प्रकट करता है जो सामान्यतः नहीं कर सकता था ।

इस वाद-विवाद में हमने एक नए शब्द टंकेषणा का प्रयोग किया । क्योंकि सारे घटनाक्रम में कुछ जगहों पर इसके अस्तित्व के चिन्ह मिले । मनुष्य में मुख्यतः दो तरह की अस्तित्वगत एषणाएं(इच्छाएं) पायी जाती हैं -जीवेषणा और मृत्येषणा । जीवन की इच्छा और मृत्यु की इच्छा । एक तीसरी तरह की एषणा होती है टंकेषणा । अर्थात टंकी पर चढने की इच्छा । यह एषणा बाल्यकाल से ही बच्चे के रूठने के रूप में देखाई देने लगती हैं । हर मानव टंकेषणा नहीं कर सकता । कुछ सौभाग्यशाली मानवश्रेष्ठ ही टंकेषणा को प्राप्त होते हैं क्योंकि उन्हें यकीन रहता है कि उन्हें टंकी से हरगिज उतार लिया जायेगा और उन्हें टंकी पर चढा देख लोग कूदना मत की गुहार मचा देंगे । ऐसे नाचीज, टंकेषणा को प्राप्त नहीं होते जिन्हें टंकारूढ देखकर लोग समझते हैं कि टंकी की मरम्मत करने गया होगा ।

रहस्यात्मक लेख नस्त्रेदम की भविष्य्वाणियों की तरह लिखे गए । उन लेखों पर समझने और न समझने वालों ने समान रूप से प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं । माहौल कुछ ऐसा हो रहा था कि कुछ भी इधर-उधर बोलना गुट विचलन/चिन्हण कर सकता था । इसलिये समझदार टिप्पणीकारों द्वारा मौन या नरो-कुंजरो की नीति अख्तियार कर ली गई थी । कुछ लोगों को यही नही समझ में आ रहा था कि आखिर सम्मेलन हो जाने से कौन सा ऐसा पहाड टूट पडा ।

ऐसे तो एक ब्लॉगर सम्मेलन इस ब्लॉगिंग मंच पर भी हो सकता है । एक दिन नियत कर लिया जाय और सभी ब्लॉगर जन उस दिन ब्लॉगिंग पर ही पोस्ट लिखें । ब्लॉगिंग पर अपने-अपने विचार व्यक्त करे । इसके लिए कई बिन्दु निर्धारित किए जा सकते हैं । एक मोटी रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है कि इन बिन्दुओं पर लिखना है । यदि एक ही दिन सब को न पोस्ट करना हो तो दो दिन में बांटा जा सकता है । बाद में ब्लॉग विमर्श संबंधी उन सारी लिंक को एक जगह रखा जा सकता है ।

इस गोष्ठी में एक अच्छी बात यह सुनने में आयी कि हर ब्लॉगर चाहे वह गोष्ठी में बोला हो या अपने ब्लॉग पर लिखा हो उतना ही बोला/लिखा जितनी उसके पास बुद्धि का स्टॉक था । हमने भी इसी चलन को फ़ॉलो करते हुए यह पोस्ट लिख मारी ।

तो नीचे दे रहे हैं उन बातों के लिंक जिनकी बातें हम अभी कर रहे थे । जो कुछ लिंक छूट भी गए हों तो संज्ञान में आते ही यहां प्रस्तुत कर दिए जाएंगे । जो छूटे हुए लिंक पेश किए जाएंगे उसके लिए अग्रिम धन्यवाद !

क्या कहा ? अभी अन्त नहीं हुआ ? कोई बात नहीं हम आने वाली पोस्टें उनके आने पर चेंप देंगे ।

तो ये रही आद्योपान्त कहानी :

October 22, 2009
इलाहाबाद से भेजी गयी ब्लॉगर्स सूची।


22 October 2009
पड़ चुके हैं संतों के चरण प्रयाग में ...


October 23, 2009
ब्लागर समारोह का उद्घाटन और सत्यार्थ मित्र का विमोचन

२२-१०-२००९
एक चर्चा इलाहाबाद से

October 23, 2009
इलाहाबाद में ब्लॉग मंथन शुरु


२३ अक्तूबर २००९
तहाँ तहाँ ते आ दाते हैं


२३-१०-२००९
हिन्दुस्तानी एकेडमी से लाइव ब्लॉगिंग...

२३-१०-२००९
फुरसतिया प्रयागराज में परिचय देवत अपन

२३-१०-२००९
हिन्दी चिट्ठाकारी में मीनू खरे की प्रस्तुति…

२३-१०-२००९
ब्लॉगिंग – कानाफ़ूसी को सार्वजनिक करने का माध्यम है : अविनाश

२३-१०-२००९
हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया : सेमिनार के कुछ वक्ता

२४-१०-२००९
इलाहाबाद ब्लॉग मंथन की विस्तृत रपट…

२४-१०-२००९
लोटपोट पर सुबह -सुबह की चर्चा

लाहाबाद से गैर-रपटाना....एकदम ब्‍लागराना

२४ अक्तूबर २००९
सबसे पहले मैंने ही


२४-१०-२००९
दूसरे दिन का पहला सत्र शुरू


24 October 2009
इलाहाबाद से लौट कर :कुछ खरी कुछ खोटी और कुछ खटकती बातें !


October 25, २००९
उन दोनों के साथ इलाहाबाद मीट मे एक ही मंच पर बैठ कर वार्तालाप करने से ----- इत्यादि को कोई आपत्ति नही हुई क्यों ?



25 October 2009
ब्लागर उवाच -प्रयाग की चिट्ठाकारिता संगोष्ठी


October 2009
......और अब बची खुची भी ! चिट्ठाकारी की दुनिया की एक अर्ध दिवसीय रिपोर्ट !


इलाहाबाद...कुर्सियॉं औंधा दी गई हैं, पोडियम दबे पड़े हैं

२५-१०-२००९
इलाहाबादी सम्मेलन की चित्रमय चर्चा

25 October 2009
हिन्दुत्ववादी ब्लॉगरों से परहेज, नामवर सिंह का आतंक और सैर-सपाटा यानी इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन…

रविवार, २५ अक्तूबर २००९
इलाहाबाद से 'इ' गायब, भाग -1


मंगलवार, २७ अक्तूबर २००९
इलाहाबाद से 'इ' गायब - अंतिम भाग


October 26, 2009
…इलाहाबाद के कुछ लफ़्फ़ाज किस्से

October 26, 2009
इलाहबाद चिट्ठाकार संगोष्ठी: बधाईयां! शर्म तो बेच खाई, ये तो लफ़्फ़ाजियों का समय है!

अक्तूबर 26, 2009
कायलियत के कायल- कैसे कैसे घायल?!!


२७-१०-२००९
बहस
कम , चर्चे ज्यादा प्रश्न कम , पर्चे ज्यादा


October 27, 2009
चिट्ठाकारी (हिंदी?) में निहित ख़तरे…


October 28, 2009
हे भीष्म पितामह, हम ब्लॉगर नहीं, पर वहां थे…

October 29, 2009
लाहाबाद चिट्ठाकार सम्मेलन के कुछ हा हा ही ही , हाय हैलो के ऑडियो - वीडियो

अक्तूबर 29, 2009
पुल के उस पार से: इलाहाबाद दर्शन

10/30/2009
इलाहाबादी चिक्-चिक् का मतलब !

३०-१०-२००९
जिन्‍हें हमारा मुल्‍क चुभता है

October 31, 2009
.इति श्री इलाहाबाद ब्लागर संगोष्ठी कथा

०१-११-२००९

इलाहाबादी कतरनें, हिन्दी चिट्ठाकारी : एक और नई चाल?


October 24, 2009

आदमी की फ़ितरतें बदली नहीं हैं देखिए


कौन है जो कह सके कर ली तरक्की देखिए
आदमी की फ़ितरतें बदली नहीं हैं देखिए

राम रहमान दोनों हैं बहुत अमनो पसन्द
जिक्र-ए-मजहब हो कहीं, उनकी शराफ़त देखिए

स्वर्ण कंगूरे कलश तो देखिए ही, साथ में

नंगे
पुजारी और अधनंगे भिखारी देखिए


उम्रभर लडते रहे जिसकी रिहाइश के लिये
वह पलायन कर गया है देखिए ना देखिए

हमने जादू खूब देखे हैं महल में राह में
फ़िर भी पापी पेट ही मुद्दा रहा था देखिए

तुमने राखें और ताबीजें निकाली हैं बहुत
होरीअब भी मर रहा है कर्ज से ही देखिए

चल रहा है आज ही रफ़्ता-रफ़्ता नौनिहाल
पास ही रखिए अभी अपनी सिखावन देखिए

क्या हुआ आती नहीं बारह खडी भी बहरफ़
एक बच्चा मिल गया मेरी लियाकत देखिए

दोष मत देना उसे जो तुझसे आगे है बहुत
देखना है कुछ अगर अपनी जहालत देखिये

कारवां है अम्न का तू हमको कायर न समझ
कोई चालें न चलेंगी विघटनों की देखिए

ढूंढते हो क्यों यहां शेरे बब्बर नस्ल तुम
अब जमीं पे रह गये खालिस बगीचे देखिए

चौंकिये न देखकर खेल उनका राह में
काम पहले कर चुके हैं सर्कसों में देखिये

बुलबुले की जात हैं इनसे बच न पाओगे
फ़ट पडॆ हैं आज इधर कल उधर देखिये

ओट करके देखिये या सामने से देखिये
देखिये तो देखिये जी प्यार ही से देखिए

खैर मकदम कीजिए या गालियां ही दीजिए
दिल से मेरे सिर्फ़ निकलेंगी दुआएं देखिए

हों सुबह की बहर में या दोपहर में बेबहर
हम तो अपनी बात ऐसे ही कहेंगे देखिए


October 20, 2009

पावर की प्रॉब्लम

पावर है तो सब कुछ है पावर नहीं है तो सब कुछ भी कुछ ना होने के बराबर है । पावर के शाब्दिक अर्थ तो बहुत हैं पर अर्थ जो ध्वनित होता है एक ही है - ताकत, शक्ति ।

इस ताकत को प्राण या जान भी कहा गया है । जिसे अभी भी विग्यान को समझना बाकी है ।
जब पावर माने बिजली होता है तो वह बिजलीधारी जीवों की आत्मा है । सब बिजली और बैटरी से चलने वाले उपकरण बिजली चालित जीव हैं । बिना बिजली के ये सब निर्जीव हैं । पावर नहीं होने पर आदमी सीधे आदिम युग में पहुंच जाता है । मनुष्य की सभ्यता का विकास शक्ति और उसको अपने ढंग से उपयोग में लाने का विकास है ।
जैसे आदमी ऊर्जा को शक्ति में बदलकर उपयोग में लाना सीख गया । विकास होता गया । बिजली वाली पावर के संकट का सामना तो हम कर ही रहे हैं ।

समाज के सारे विमर्श पॉवर के विमर्श हैं ।
स्त्री-पुरुष, शासक-शासित, नौकर-मालिक, अमीर-गरीब, अफ़सर-मातहत में मुख्य अन्तर पॉवर का ही है ।
कई उन्नत सभ्यतायें पॉवर हीन होने की वजह से नष्ट हो गईं ।
पावर शारीरिक भी होता है और मानसिक भी । लेकिन जो भी हो पॉवर अन्ततः निर्णायक होता है ।
धर्म और ईश्वर से भक्त या श्र्द्धालु का "प्रेम" वस्तुतः ताकत के प्रति प्रेम है ।
यह बहस और विवाद की बात हो सकती है ।
क्या कोई शक्तिविहीन ईश्वर को प्रेम करना पसन्द करेगा ? तुलसीदास जी ने तो कह ही दिया है की "भय बिन होय न प्रीत" ।

धर्म का विकास ही वास्तव में ताकत के तुष्टीकरण के रूप में हुआ है ।

ताकत ही ऊंच-नीच का भेद पैदा करता है । श्रेष्ठ हमेशा ताकतवर होता है या उसके अन्दर किसी न किसी रूप में शक्तिशाली होने का भाव होता है ।
और इस विषमता का संग्यान भी ताकत के द्वारा ही लिया जाता है ।

प्रेम, नैतिकता और मानवता पॉवर को दरकिनार करके व्यवहार करने की शिक्षा देते हैं । यहां भी शक्ति ही है पर यह सृजनात्मक शक्ति है ।

इस तरह शक्ति के दो विरोधी रूप सतत कार्यरत रह्ते हैं । परमाणु से लेकर ब्रह्मांड तक ।

एक - सृजन , दो - विनाश ।

कहा जाता है कि आदमी की असली पहचान तब होती है जब वह पॉवर में होता है । इसी को दूसरे ढंग से कहा जाता है की जब वह सत्ता में होता है ।
शक्ति एक विरेचक भी है जो आदमी की छिपी हुई कामनाओं को तुरन्त बाहर ला देती है । दीन-हीन अवस्था में आदमी सेफ़-मोड में रहता है ।
अपने गुस्से वगैरह को औकात में रखे हुए । पॉवर में आते ही उसका व्यवहार एकदम से बदल जाता है । इसका उल्टा भी होता है ।
मतलब पॉवर के जाने से भी व्यवहार उतना ही जल्दी उलटता है । यह कहा जा सकता है की ताकत इन्सान के व्यवहार को भी निर्धारित करती है ।
अच्छा आदमी वही कहा जाता है जो ताकत में होने पर भी उसका एहसास ना कराये । यदि आप बन्दूक रखे हैं तो दिखाइये मत ।
अगले को यदि आपकी ताकत का पता नहीं चलेगा तो वह डरेगा क्यों । ताकत को नियंत्रित कर पाना ही असली ताकत है । यही ताकत विकास और सृजन करती है ।

ताकत प्रेम की तरह स्वयं अपने आप में उपयोगी नहीं है, बल्कि इसका महत्व इसका उपयोग कर लेने में है । कहने का मतलब यह आपको आनंदित नहीं करेगी यदि आप इसका उपयोग ना करें । इसीलिये ताकतवर आदमी या तो भगवान बन जायेगा या शैतान बन जायेगा । अर्थात किसी न किसी रूप में ताकत को विसर्जित करेगा ।

शक्तिहीन हो जाने पर सूर्य , तारे यहां तक की आकाश गंगा भी शून्य़ में विलीन होने लगती हैं ।
इस लेख के अन्त तक पहुंचते पहुंचते ऐसा लग रहा है कि जिस तरह वैयक्तिक चेतना मनुष्य के रूप में शक्ति को मनचाहे ढंग से प्रयोग करने के क्रम में पहिए के आविष्कार से शुरू करके सूक्ष्म उपकरणों से गुजरते हुए स्वचालित कृत्रिम बुद्धि तक विकास करती जाती है , ठीक उसी तरह समष्टि चेतना भी एक कोशिकीय जीव से लेकर पादप और जीव जगत में विकास करते हुए मनुष्य के अति उन्नत मस्तिष्क तक पहुंचती है ।

और अन्ततः व्यष्टि चेतना के द्वारा निर्मित स्वचालित कृत्रिम बुद्धि अपने उच्चतम शिखर पर मानवीय बुद्धि से अंशतः समायोजित होकर मशीनी मानव
का निर्माण करती है ।

October 17, 2009

छोटा सा दीपक है बडा पैगाम है !



क्यों सूरज की राह तकें
चंदा से क्यों भरमायें
अन्धकार को क्यों कोसें
हम इक दीप जलायें ।

दीपक हमें सिखाता चलना
घटाटोप अंधियारे में
दीपक एक दिलासा भी है
जीवन दुख के गलियारे में,
खुद के दीपक बन जायें

छोटा सा दीपक है
बडा पैगाम है
रोशनी के लिये जलना ही
दीपक का काम है

मृण्मय के दीपक औ
तृण्मय की बाती में
चिन्मय की ज्योति
प्रज्वलित हो जाये,
कण-कण जगमगाये

प्रीति की थाली में
चांदी सी खुशियां हों
दीजिये सबको
मोती सी दुआएं,
फ़ुलझडियों बिखर जायें


साथ ही,
पिछले साल दीपावली पर तेज बम के धमाकों से उस दिन तहेदिल से मुझे अफ़सोस हुआ था जब मेरी साल भर की बिटिया, कान फ़ोडू बम के धमाकों से सहम सहमकर रोने लगती थी । देर रात तक कई बार सोते हुए से घबराकर बैठ जाती थी । खुशियों को मातम में तब्दील करने का तरीका आदमी से बेहतर कौन जानता है ? अफ़सोस होता है ऐसे अन्धेपन को देखकर । तेज पटाखों से पर्यावरण को नुकसान और आतिशबाजी के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं के बावजूद , प्रशासन इस दिशा में कोई
ठोस नियम नहीं बनाता ना ही उस पर कार्रवाई की जाती । ऐसे लोग त्योहारों के दुश्मन हैं क्योंकि वे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करके त्योहारों की प्रासंगिकता पर ही प्रश्न चिन्ह खडा करते हैं ।

इसीलिये कहते हैं शायर :
तुम शौक से मनाओं जश्ने बहार यारों
इस रोशनी में लेकिन कुछ घर भी जल रहे हैं

चिराग ऐसा जलाओ कि बेमिसाल रहे
किसी का घर न जले ये ख्याल रहे

********************************
दीप जलते रहें, जगमगाते रहें
हम आपको, आप हमें याद आते रहें

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ !

October 12, 2009

जहां सुमति तहं संपति नाना

एक बार किसी गांव में रामचरिमानस पाठ का आयोजन किया गया जोर-शोर से लय में उतार-चढाव के साथ रामायण गायी गयी सभी संबंधित भगवान जी लोगों की जै और भक्त समाज की जै जयकार करने के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ बातचीत के दौरान एक पन्डित जी भाव विभोर होकर कहने लगे -

"वाह रे तुलसी बाबा तुमने सब लिख दिया"

सभा में कुमतिया भी बैठा था, जो अपने अक्ख्डपन और उटपटांग प्रश्नों के लिये जाना जाता था । वैसे उसका नाम सुमति था लेकिन प्यार से लोग उसे कुमतिया कहते थे।

जब सुमति ने यह बात सुनी तो उसे बडा अचम्भा हुआ । उसने झट से प्रशन किया ।

"महराज, क्या तुलसी बाबा ने सब लिख दिया ?"

पंडितजी बोले हां हां क्यों नहीं ? ऐसा कौन सा विषय है जो मानस में नहीं है । धर्म, नीति, समाज, राजनीति, दर्शन के सारे प्रकार हैं । वाह वाह करते हुए पंडित जी गदगद हुए ।

लेकिन सुमति उर्फ़ कुमतिया संतुष्ट नहीं था । उसने प्रतिजिज्ञासा की -

"महराज यदि ये बात तो मुझे बडी अटपटी मालूम पडती है कि सब लिख दिया । फ़िर कुछ सोचकर बोला कि अच्छा जब सब ही लिख दिया तो क्या मेरे नाना के बारे में भी कुछ लिखा है ? अगर लिखा होगा तो मैं मान लूंगा कि सब लिख दिया है ।"

अब पन्डित जी जरा घबराये कि किस मूर्ख चक्कर में पड गये आज । ये तो बात ही पकड के बैठ गया । गांव वाले ठीक ही इसको कुमतिया कहते हैं ।

लेकिन पंडित जी भी पके हुए जीव थे ऐसे कुतर्कियों को भी कुछ ना कुछ पकडा ही देते थे ।

बोले "अच्छा बता तेरे नाना का क्या नाम था"

"मेरे नाना का नाम सम्पति था"
इतना सुनते ही पन्डित जी की आंखों में चमक आ गई । उन्होने कहा "हां, हां बिल्कुल लिखा है"

तेरे और तेरे नाना दोनों के बारे में लिखा है - "जहां सुमति तहं संपति नाना, जहां कुमति तहां विपति निदाना"

इतना सुनते ही कुमतिया तुलसी बाबा के प्रति श्रद्धानवत होते हुए कहने लगा कि मान गये जब मेरे नाना के बारे में लिख दिया तो सब लिख दिया ।

यह तो थी एक कहानी । जिस कलाकार ने भी बनायी बढिया बनाई ।

अब एक कविता पढिये । कविता के रचयिता कवि का हमें पता नहीं है । यदि आपको मालूम हो तो बता दीजियेगा|

टूटे फ़ूटे हैं हम लोग
बडे अनूठे हैं हम लोग

सत्य चुराता नजरें हमसे
इतने झूठें हैं हम लोग

इसे साथ लें उसे बांध लें
सचमुच खूंटें हैं हम लोग

क्या कर लेंगी वे तलवारें
जिनकी मूठे हैं हम लोग

मयखारों की हर महफ़िल में
खाली घूंटें हैं हम लोग

हमें अजायबघर में रख दो
बडे अनूठे हैं हम लोग

हस्ताक्षर तो बन ना सकेंगे
सिर्फ़ अंगूठे हैं हम लोग

October 08, 2009

तेरा होना सदा है कविता सा....

फिर तुम्हारा ख़याल आने लगा
दिल कोई गीत गुनगुनाने लगा

एक बहुत खूब शायरी पढकर
क्यों मैं शायर से मिलने जाने लगा

कितने नाजुक हैं ये नये रिश्ते
देखकर फूल भी लजाने लगा

अब तो बातों में भी है खामोशी
शायद अपना पडाव आने लगा

तेरा होना सदा है कविता सा
मैं तो अपनी गजल छिपाने लगा

जो मुझे एक पल में कहना था
उनको कहने में भी ज़माना लगा

जिक्र की राह अब हुई आसां
खौफ बन्दा खुदा से खाने लगा

या तो उलझो ही आज, या हंस दो
नाप-तौल अब तो मन उबाने लगा

उनकी बातों का कैसा शिकवा अब
उनका गुस्सा ही जब रिझाने लगा

October 06, 2009

सपने प्राथमिक हैं, बाकी सब उसके पीछे

1
बदलाव के तूफ़ान में कभी कभी हम अपनी सही दिशा पा लेते हैं |

2
जो देता है, वही पाता है

3
आदमी और जो वह जीवन में पाना चाहता है, उसके बीच सिर्फ़ प्रयत्न करने की इच्छाशक्ति और यह विश्वास होता है कि यह सम्भव है

4
सपने प्राथमिक हैं, बाकी सब उसके पीछे
















अपनी खुशी को दूसरों के साथ साझा कीजिये
















छोटी छोटी चीजों का आनंद लीजिये, एक दिन आप पीछे देखेंगे और पायेंगे की वे बड़ी चीजें थीं
















अपना मुंह सूरज की तरफ़ रखिये, आपको अँधेरा नही दिखेगा















प्रसन्नता एक प्रकाश है जो आपको आशा, विश्वास और प्रेम से भर देता है
















हंसना एक त्वरित विश्राम है
















१०
प्रेम करना और प्रेम पाना, दोनों तरफ़ से सूर्य को महसूस करने जैसा है |
















११
यह जीवन की सबसे बड़ी करूणा है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे की मदद करने में ख़ुद की मदद होने की भावना महसूस किए बिना, ईमानदारी से दूसरे की मदद नहीं कर सकता
















१२
ख़ुद को ज़रा सीमाओं के पार उछालिये, बाकी सब अपने आप हो जाएगा

October 03, 2009

बिजली कटौती कार्यक्रम

मध्यप्रदेश में इन दिनों बिजली कटौती का कार्यक्रम इस प्रकार है ।

सम्भाग मुख्यालय में 3 घन्टे कटौती

जिला मुख्यालय में 6 घंटे

कस्बों में 8 घंटे

और गांव में 11 घंटे बिजली की कटौती होती है

कटौती के घंटे इससे ज्यादा हो सकते हैं कम नहीं ।

बिजली और सडक गांव को हरा देती हैं । कस्बों और शहरों को गांव से जोडने वाली सडकें लगभग हमेशा खस्ताहाल रहती हैं । क्योंकि सडकें ऐसी बनती हैं कि बनने के साथ ही उखडना शुरु हो जाती हैं । मरम्मत तभी शुरू होती है जब सडकें बिल्कुल गायब हो जाती हैं । इस तरह आधे घंटे की दूरी तय करने में डेढ-दो घंटे लग जाते हैं । यह सब चीजें गांव को गांव बना देती हैं ।

गांव की फ़िल्मी रोमान्टिक तस्वीर से अलग ज्यादातर गांवों का मतलब स्वास्थ्य सेवाओं, बिजली और सडक का अभाव भी होता है ।अब ग्रामीण जीवन में आधुनिक उपकरणॊं का बहुतायत उपयोग होता है, सबके पास तो शहर में भी नहीं होता । पर बिजली न रहने की वजह से सब बेकार पडे रहते हैं ।

पंखा कूलर, टीवी फ़्रिज वगैरह को बिजली मुंह बिराती रहती है । सबसे ज्यादा नुकसान किसानों और विद्यार्थियों को होता है । प्रदेश में जहां अधिकांश सिंचाई बोरवेल में लगे सबमर्सिबल पंप से होती है, किसान चातक की तरह बिजली आने के इन्तजार में रहते हैं । हमारे यहां के सिंचाई के साधन भी तभी कारगर हैं जब बारिश ठीक-ठाक हो । बारिश नहीं होती तो पानी से टर्बाइन चलाकर बनने वाली बिजली की आपूर्ति कम हो जाती है ।

इन सब चीजों कि सबको आदत पड चुकी है । देश ने प्रगति की है लेकिन सडक और बिजली की हालत अभी भी खस्ता है । इन दो चीजों का अभाव कई सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है क्योंकि यह सीधे विकास से जुडा हुआ है ।

यह हम गांव से ही लिख रहे हैं । बिजली नहीं है और लैपटाप की बैटरी चुकने वाली है ।