May 19, 2009

प्यार या जुकाम

प्यार जुकाम जैसा होता है क्योंकि दोनों ही मर्जों में निम्नलिखित समान लक्षण देखे जाते हैं :

* दोनों ही मर्जों से पीडित व्यक्ति का कोई इलाज नहीं है ।

* मर्ज से पीडित व्यक्ति ठीक दिखते हैं लेकिन होते नहीं ।

*दोनों ही तरह के मर्जों की रोकथाम के लिये टीकाकरण या बरती जाने वाली सावधानियों जैसे कोई पूर्व उपाय कारगर नहीं हैं ।

* यद्यपि दोनों ही मर्जों का प्रकोप कम उम्र लोगों को पर ज्यादा होता है, फ़िर भी यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है ।

* दोनों ही प्रकार के रोगों से पीडित व्यक्ति बीमारी से मरते नहीं । यदि ऐसा सुनने में आता भी है तो भी वह बीमारी का प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होता ।

* दोनों ही बीमारियां सन्क्रामक हैं । रोगी के दोस्त, परिवार और शिक्षक इससे प्रभावित हो सकते हैं ।

* रोग की चरम अवस्था में नाक और आँखों पानी बहना शुरु हो जाता है और मस्तिष्क काम करना लगभग बन्द कर देता है ।

* प्राकृतिक और घरेलू उपचार इन रोगों में ज्यादा फ़ायदेमन्द होते हैं । उदाहरणार्थ प्यार के मामले में प्यारी/प्यारे वस्तु की उपस्थिति और जुकाम में बाम वगैरह ।

* दोनों ही तरह रोगों के ज्वर एक निश्चित अवधि के बाद उतर जाते हैं एवम पीडित पूर्णतः सामान्य होकर अपने काम-धन्धे में जूझ जाते हैं ।

* दोनों ही बहुत सामान्य बीमारियां हैं और संसार भर में पायी जाती हैं ।

* प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्यतः कभी न कभी इन बीमारियों की चपेट में अवश्य आता है ।

* जुकाम सैकडों तरह के विषाणुओं की वजह से होता है, इसीलिये इसका इलाज नहीं खोजा जा सका इसी तरहप्यार भी हार्मोनल रसायनों, वंशानुगत विशेषताओं से लेकर वातावरण तक से प्रभावित होता है |

* जिन मित्रॊं को गलतफ़हमी हो कि जुकाम के कई इलाज बाजार में आ गये हैं, तो उनकी बात भी इतनी ही दुरुस्त है कि यदि आप दवाइयां लेते हैं तो जुकाम ७ दिन में ठीक हो जाता है और नहीं लेते तो एक सप्ताह में ।

May 14, 2009

नमस्ते !

यूँ तो नमस्ते या नमस्कार आज एक औपचारिक अभिवादन मात्र रह गया है, किन्तु यह एक शब्द पूरे भारतीय संस्कृत और दर्शन का सारतत्व समेटे हुए है । जब इस शब्द पर गहराई से विचार करते हैं, तो हमारा मन उन मनीषियों की आध्यात्मिक ऊंचाई और जीवन के प्रति उनकी अकूत समझ पर श्रद्धा से भर जाता है।

नमस्ते और नमस्ते करने की मुद्रा ठेठ भारतीय है । नमस्ते पर सारे भारतीय मत-मतान्तर वैदिक और अवैदिक, नास्तिक और आस्तिक, आर्य और द्रविड उसी प्रकार सहमत हैं जैसे समस्त भारतीय चिन्तन कर्म के सिद्धांत , पुनर्जन्म और ॐ पर सहमत हैं । चार्वाक को छोडकर ।

नमस्ते शब्द और नमस्ते करने की मुद्रा अद्भुत है । आइये इसके आध्यात्मिक पक्ष को समझने कि कोशिश करें ।

भारतीय धार्मिक परम्परा मूल धारा भक्ति की रही है । ध्यान और योग परम्परा की भी अपनी सत्ता थी, लेकिन वह केवल कुछ विशिष्ट वर्ग जैसे साधु-सन्यासियों तक ही सीमित थी । लोक मानस में भक्ति ही लोकप्रिय थी । आज भी है |

भक्ति में भाव ही प्रधान होता है । भाव का स्थल ह्रदय को माना जाता है। हालाँकि आधुनिक चिकित्सा शास्त्र मस्तिष्क को ही सारे ज्ञानात्मक अनुभव का केन्द्र मानता है, लेकिन यहां ह्रदय भाव का प्रतीक है ।

नमस्ते शब्द का यदि हम विश्लेषण करें तो इसका अर्थ इस तरह है :

नम = झुकना या नमन करना ।
अस = मैं ।
ते = तुम

अतः नमस्ते का शाब्दिक अर्थ हुआ कि मैं तुम्हारे सामने झुकता हूं या मैं तुम्हे नमन करता हूं ।

नमस्ते की मुद्रा इस विश्वास को प्रदर्शित करती है की प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में दिव्याग्नि होती है जो कि ह्रदय चक्र में स्थित होती है ।

नमस्ते की आदर्श मुद्रा में हम दोनों हाथ जोडकर ह्रदय चक्र पर रखते हैं और सिर झुकाते हैं । यही प्रार्थना की मुद्रा भी है । यह क्रिया दोनों हाथॊं को जोडकर, हाथों को दोनों भौहों के मध्य(जहां त्रितीय नेत्र अवस्थित माना गया है) रखकर सिर झुकाते हुए और दोनों हाथ ह्रदय के पास लाते हुए भी की जा सकती है । यह बहुत ही गहन आदर प्रदर्शित करने का एक रूप है ।

नमस्ते की क्रिया ऐसी है की उसकी मुद्रा में ही नमस्ते का भाव छुपा हुआ है, इस तरह नमस्ते शब्द ना भी बोला जाये तो भी नमस्ते हो जाती है ।

एक तरह से नमस्ते व्यक्ति में छुपे हुए परमात्मा के प्रति भावाभिव्यक्ति है ।

नमस्ते करना ह्रदय से जुडने का प्रतीक है । नमस्ते विभिन्न व्यक्तियों के ऊर्जात्मक रूप से जुड़ने की विधि है | हमारे अहंकार का केन्द्र मस्तिष्क या मन है । जो व्यस्टि को समष्टि से अलग करता है । इस तरह नमस्ते अहंकार से मुक्त होकर ह्रदय से जुडने का आमन्त्रण है।

इसलिए नमस्ते कराने के फायदे ही फायदे हैं, लोक व्यवहार में भी और स्वयं से जुड़ने के लिए भी | इसलिए नमस्ते करते रहिये कोई प्रत्युतर में नमस्ते करे या नहीं |

नमस्ते !
सभी चित्र - गूगल |

May 13, 2009

हे प्रभु हमें शक्ति दो !

हे प्रभु हमें शक्ति दो !
अपने कर्त्तव्यों को कभी भूलें हम,
निज कर्म पथ पर बढ़ते रहने की हमें आसक्ति दो |
हे प्रभु हमें शक्ति दो !

मंजिल हमारी दूर है पथ कंटकों से है भरा,
और कितनी दूर जाना हैं नहीं हमको पता |
दोस्त बन जाएँ ये कंटक, हमको ऐसी युक्ति दो |
हे प्रभु हमें शक्ति दो |

हो कभी ऐसी परिस्थिति, चित्त हो जाए संशकित |
धैर्य का पुल टूटता हो, मनोबल हो किंचित |
विश्वास पर तुमसे हटे , हमको ऐसी भक्ति दो |
हे प्रभु हमें शक्ति दो |

भाव उठते हैं ह्रदय में कर नहीं पाते प्रकट,
ज्वार उठते हैं, ह्रदय में कंठ में जाते अटक |
बन सकें तेरी ही वीणा, ऐसी कुछ अभिव्यक्ति दो |
हे प्रभु हमें शक्ति दो !

(यह कविता मैंने 11 वीं कक्षा में लिखी थी )

May 08, 2009

दूरी का दर्शन

यद्यपि यह दूरी ही है
आधार मेरे, तुम्हारे और

इस संसार की मौजूदगी का,
फ़िर भी शिकायत की जाती है
दूरी की
इसके अदृश्य पैमानों के द्वारा,
जो बदलते रहते हें, समय के साथ
जाने जाते हैं, अलग-अलग नामों से |

यह एक ही शब्द सबसे सरल
सबकी समझ में आने वाला
और हर प्रश्न का उत्तर ,
जैसे कोई मास्टर चाबी या
हर मर्ज की एक ही दवा |

वह एक शब्द
जो नहीं लिया गया,
गम्भीरता से व्याख्या के लिये
तत्वशात्र की, मानवीय संबंधों की
और इस अस्तित्व की |

यह रहस्यात्मक है, इसकी इकाइयां
बदलती रहती हैं समय के साथ,
पैठ करती हुई विभिन्न आयामों में |
इसीलिये तो लोग पास आकर भी दूर हो जाते हैं,
अमाप्य फ़ासलों तक
निर्मित हो जाता है एक ब्लैक होल
जो सोख लेता है
सम्बन्ध के समस्त उपायों को |

इस विश्व का आधार है
परमाणुओं, अणुओं, ग्रहों और
सितारों के बीच की दूरी,
संबंधों के बनने और बिगडने का
आधार भी है दूरी |
अलग-अलग तय सीमाओं में
दूरी के सेतु से बन्धे हुए हें हम |
जिस पर चढ्कर जाते हैं,
एक दूसरे तक |

दूरी ही जड है
सभी व्यक्तियों, समुदायों और
धर्मों के बीच झगडे का |
जीवन का विरोधाभाष है धर्म
जो जन्मतें हैं,
दूरियां मिटाने के नाम पर
सबसे ज्यादा दूरियां बढाते हुए
दिलों के बीच |

राजनीति, जो
दूरियां पैदा करने का ही
घॄणित रोजगार है,
धोने को विवश हैं, हम
इस आवश्यक बुराई को
अपने बीच कि दूरियों के कारण |

प्रेम है दूरियां मिटाने का,
सुखद दूरियां बनाये रखने का उपकरण ।
और दूरी का दर्शन समझने में है
जीवन का रह्स्य |

May 01, 2009

बीबीसी हिन्दी - चुनाव चर्चा के बहाने

यद्यपि बीबीसी हिन्दी सेवा किसी परिचय की मोहताज नहीं है और इसके कार्यक्रम हिन्दी और अहिन्दी भाषियों के बीच अपनी निष्पक्षता और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्द हैं | फ़िर भी केबल के माध्यम से प्रचलित समाचार चैनलों की प्रचुरता की वजह से गावों और कस्बों के तुलना में शहरों में श्रोताओं की संख्या कम है | लेकिन इन्टरनेट पर बैठने वालों के लिए इसके कार्यक्रम सुनना बहुत ही आसान और उपयोगी है | खासकर जब यह बात मैं हिन्दी ब्लॉग्गिंग के मंच पर कर रहा हूँ |

इन्टरनेट के माध्यम से कार्यक्रम सुनाने में सबसे बड़ी सुविधा यह है की इसमें समय की कोई पाबंदी नहीं है, आप किसी भी तारीख का कोई भी कार्यक्रम कभी भी सुन सकते हैं |

वर्तमान समय में हो रहे 2009 के आम चुनावों के सन्दर्भ में चल रहे बीबीसी के चुनाव कार्यक्रम जैसे - रात 8 बजे से आजकल कार्यक्रम के बाद आने वाला चुनाव चर्चा, चुनाव समीक्षा तथा विशेषज्ञों एवं आम जनता से बातचीत मुझे इतनी पसंद आयी की मैं इस पर ब्लॉग पोस्ट लिखने से अपने आप को नहीं रोक सका |

बीबीसी के संवाददाता इस चुनाव के लिए विशेष रूप से विभिन्न शहरों जैसे - मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, हैदराबाद, पटना, भोपाल इत्यादि में पहुंचे हुए हैं | और वहां वे जनप्रतिनिधियों और आम जनता को इकट्ठा करके चुनाव से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं | यह बीबीसी के संवाददातों का कौशल ही है की यह चर्चा बहुत ही जीवंत और प्रामाणिक बन पड़ती है | लगभग 30 मिनट के कार्यक्रम में इतना उपयोगी विमर्श हो जाता है की मजा आ जाता है |
यहाँ ऐसे विषय और मुद्दे भी उठाये जाते हैं, जिनसे समाचार चैनल अज्ञात विवशता या अज्ञानवश चूक जाते हैं|

मैं सुने गए कुछ कार्यक्रमों की चर्चा करता हूँ |

पटना शहर में किए गए चुनाव चर्चा कार्यक्रम में राजनीतिक पार्टियों द्वारा बाहुबलियों और आपराधिक पृष्ठभूमि रखने वालों को बड़ी संख्या में टिकट देने पर चर्चा हुई | इस आम चुनाव में चुनावी समर में भाग लेने वाले उम्मीदवारों में से लगभग २२% उम्मीदवार आपराधिक रिकार्ड वाले हैं |

अहमदाबाद की चुनावी सभा में मोदी, हिंदुत्व और कांग्रेस की गुजरात में असफलता पर चर्चा हुई | इसी मौके पर सूरत के हीरा उद्योग पर मंदी का असर, हजारों रत्नाकार श्रमिकों की बेकारी और राज्य सरकार द्बारा कोई मदद नहीं दिए जाने की बात भी लोगों द्बारा उठाई गयी | यह भी चर्चा हुई की मोदी द्बारा विकास का प्रचार "इंडिया शाइनिंग" जैसा ही है और शहरों को छोड़कर दूर-दराज के क्षेत्रों में आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं |

अभी दो दिन पहले एक समीक्षा में भारतीय राजनीति में फ़िल्म अभिनेताओं के चुनाव लड़ने पर चर्चा हुई |
इसमें बोलीवुड के कलाकारों की राजनीति में असफलता और दक्षिण भारतीय फिल्मी कलाकारों की आश्चर्यजनक सफलता के कारण भी बताये गए | चुनाव समीक्षक योगेन्द्र यादव ने इसका एक कारण यह बताया कि हिन्दी फिल्मों के अभिनेता या अभिनेत्री किसी राजनीतिक दल द्बारा प्रायोजित किए जाते हैं और चुनाव के बाद वे फ़िर से अपने मूल व्यवसाय की तरफ़ "आ अब लौट चलें" की तर्ज पर वापस चले जाते हैं | जबकि दक्षिण भारत के कलाकार अपनी एक नई पार्टी बनाकर अपने दम पर चुनावी पारी शुरू करते हैं |

फिल्मी सितारों या मंच की हस्तियों द्बारा चुनाव प्रचार करवाना या ग्लैमरस लोगों को चुनाव में टिकेट देना, राष्ट्रीय दलों के जमीनी स्तर पर कमजोर होते जाने को pradarshit करता है |

बीबीसी हिन्दी सेवा को सुनना अपने आप में एक अलग अनुभव है, सूचनात्मक भी और ज्ञानात्मक भी | तो अब जब भी अंतरजाल (इन्टरनेट) पर घुमक्कडी करें तो साथ-साथ बीबीसी कि चुनाव चर्चा सुनने का आनंद लें |