August 13, 2009

कृष्ण : जीवन की समग्रता के प्रतीक

"कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है, अनूठेपन की पहली बात तो यह है, की कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के | मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया की कृष्ण का समसामयिक बन सके | अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं | भविष्य में ही यह सम्भव हो पायेगा की कृष्ण को हम समझ पायें |

इसके कुछ कारण हैं |

सबसे बड़ा कारण तो यह है की कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं | साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना है | जिंदगी से उदास, हरा हुआ, भागा हुआ | कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यक्ति हैं | हंसते हुए गीत गाते हुए | अतीत का सारा धर्म दुखवादी था | कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास , आंसुओं से भरा हुआ था | हँसता हुआ धर्म, जीवन को समग्र रूप से स्वीकार करने का धर्म अभी भी पैदा होने को है |

कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं | जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है | इसलिए इस देश ने सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है | और यह कहने का यह सोचने का ऐसा समझने कारण है | वह कारण यह है की कृष्ण ने सब कुछ आत्मसात कर लिया है |

कृष्ण अकेले हैं जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी 'टोटैलिटी' में | यह एक आयाम में नहीं सभी आयाम में सच है |
पुराने मनुष्यजाति के इतिहास में कृष्ण अकेले हैं, जो दमनवादी नहीं हैं | वे जीवन के सब रंगों को स्वीकार कर लिए हैं | वे प्रेम से भागते नहीं | वे पुरूष होकर स्त्री से पलायन नहीं करते | वे परमात्मा को अनुभव करते हुए युद्ध से विमुख नहीं होते | वे करुणा और प्रेम से भरे होते हुए भी युद्ध में लड़ने की सामर्थ्य रखते हैं | अहिंसक चित्त है उनका फ़िर भी हिंसा के ठेठ दावानल में उतर जाते हैं | अमृत की स्वीकृति है उन्हें, लेकिन जहर से कोई भय भी नहीं है |

ऐसी आत्मा भी क्या जो शरीर से भी डरती हो और बचती हो | कृष्ण द्वंद को एक साथ स्वीकार कर लेते हैं | इसलिए द्वंद के अतीत हो जाते हैं | भविष्य के लिए कृष्ण की बड़ी सार्थकता है और भविष्य में कृष्ण का मूल्य निरंतर बढ़ता ही जाता है |

कृष्ण को समझना बड़ा कठिन है | आसान है यह बात समझना की एक आदमी संसार छोड़कर चल जाए और शांत हो | कठिन है इस बात को समझना कि संसार के संघर्ष में बीच में खड़ा होकर और शांत हो | आसान है यह बात समझनी कि एक आदमी विरक्त हो जाए, आसक्ति से सम्बन्ध तोड़कर भाग जाए और उसमें पवित्रता का जन्म हो | कठिन है यह बात समझनी कि जीवन के सारे उपद्रव के बीच, जीवन के सारे उपद्रव में अलिप्त, जीवन के सारे धूल-धवास के कोहरे और आँधियों में खड़ा हुआ दीया हिलता न हो, उसकी लौ कांपती न हो - कठिन है यह समझना | इसलिए कृष्ण को समझना बहुत कठिन है | लेकिन पहली दफा आदमी ने अपना पूरा परीक्षण कृष्ण में किया है | ऐसा परीक्षण कि सम्बन्ध में रहते हुए असंग रहा जा सके और युद्ध के क्षण में भी करुणा न मिटे | और हिंसा की तलवार हाथ में हो तो भी प्रेम सूरदास दीया सकते सकते न
बुझे |

कृष्ण पूर्ण अवतार हैं । कृष्ण के बहुत रूप हैं । कृष्ण उतने रूपों में प्रकट हुए हैं, जितने रूप हो सकते हैं । गीता का कृष्ण तो सिर्फ़ एक ही रूप है कॄष्ण का । शंकराचार्य, अरविन्द, लोकमान्य तिलक उस रूप के प्रेम में हैं । कृष्ण इतने विराट हैं कि तुम अपने मनपसन्द का कृष्ण चुन सकते हो । मीरा ने कॄष्ण को ऐसे देखा जैसे राधा ने देखा होगा, सखियों ने देखा होगा । मीरा के कॄष्ण मीरा के पति हैं, प्रीतम हैं ।

सूरदास ने कोई तीसरा ही कृष्ण चुना है । वह है छोटा सा बालक कॄष्ण, पैर में गुनगुनिया बान्धे नंग-धडंग यशोदा को परेशान कर रहा है । सूरदास ने बालक कृष्ण को चुना है ।

कृष्ण तो एक सागर हैं । उनके बहुत घाट हैं । तुम जो घाट से चाहो उतर जाओ । गीता एक घाट है, फ़िर कृष्ण का बालपन दूसरा घाट है । फ़िर कृष्ण की युवावस्था तीसरा घाट है । बहुत घाट हैं, कृष्ण के साथ बडी स्वतंत्रता है । तुम्हारा जैसा भाव हो, कृष्ण की तुम वैसी मूर्ति गढ सकते हो ।

कृष्ण को तुम अपने ढंग से प्यार कर सकते हो, तुम्हे स्वतंत्रता है ।"

ओशो द्वारा दी गई प्रवचनमाला "कृष्ण-स्मृति" के चुने हुए अंश |

6 comments:

  1. Aapki is satvik sundar vivechna ne man mugdh kar liya....mere vichaar bhi bahut kuchh aise hi hain is vishay me...Aabhar aapka.

    ReplyDelete
  2. Kshma karen..Osho ke sthan par maine aapke vichar likh diye.
    khair koi baat nahi aapke kathan na bhi hon,aap isse prabhavit hain ,yah prashanshneey hai.

    ReplyDelete
  3. osho ko bahut padha. bahut din baad aaj aapke maadhyam se padha. achchha laga.

    ReplyDelete
  4. janamaashtmi ki shubhkaamnaayen. sundar aalekh. sach hai, samast avataaron men keval krishn hi aashavaadi vichaardhaara aur prem ke svaroop ko sthaapit karane vaale hue.badhaai.

    ReplyDelete
  5. कृष्ण जी के बारे में पढ़कर अत्यंत ख़ुशी हुई .जय हिंद और साथ ही जन्माष्टमी की भी बधाई

    ReplyDelete

नेकी कर दरिया में डाल